मेडिकल कॉलेज जबलपुर 21-6- 1976
मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
किश्त एक
छीन लिए गए नागरिकों के मूलभूत अधिकार
मेडिकल कॉलेज जबलपुर 21-6- 1976
मेडिकल कॉलेज जबलपुर 21-6- 1976
26 जून 1975 से इंदिरा गांधी द्वारा पूरे देश में आपातकाल लगाते
ही सारे कांग्रेस विरोधी राजनैतिक दलों के प्रमुख को तथा सक्रिय कार्यकर्ताओं को
एक साथ उसी दिन जेलों में बंद कर दिया गया। इसके बाद सार्वजनिक संस्थाएँ, जो कांग्रेस की अनुगामी न होकर स्वतंत्र रूप से चलती
थीं तथा देश व जनहित का कार्य करती थीं उन्हें भी गैर कानूनी करार देकर उनके सारे
कार्यकर्ताओं को भी जेलों में 'मीसा' कानून के अंतर्गत बंद कर दिया। किसी को कोई कारण नहीं बतलाया गया कि उन्हें
क्यों जेल में डाला गया। जब लोगों ने जवाब चाहा तो 29 जून को तत्काल
आर्डिनेस द्वारा 'मीसा' कानून में यह
परिवर्तन कर दिया कि 'मीसा' निरूद्धों
को कोई कारण बतलाने की जरूरत नहीं। इतना ही नहीं न ही अदालत को कारण बतलाने
की जरूरत महसूस की गई और न किसी मीसा निरूद्धों को अदालतों में जाने का हकहोगा कहा
गया।
इसी के
साथ संविधान में दिये गए नागरिक के सारे मूलभूत अधिकार आपातकाल के दौरान खत्म कर
दिए गए। वे सारे अधिकार कार्य पालिका को याने कलेक्टर तथा पुलिस को दे दिए गए।
जिसमें वे बिना किसी भी वजह से बगैर कारण
बताए मीसा में या दफा 151 में जिस किसी को भी
गिरफ्तार कर जेलों में चाहे जितने दिनों तक बंद रखा सकते हैं। उन्हें यह पूछने का
कोई अधिकार नहीं होगा कि उन्हें क्यों बंद किया, कब तक बंद
रखेंगे, तथा किसलिए बंद किया है? उनके
साथ वे मनमाना व्यवहार- मारपीट, गाली-गलौच, उनके जमीन जायदाद की तोड़-फोड़ कर सकते हैं। उनके
परिवार के लोगों को, रिश्तेदारों को या दोस्तों को
परेशान कर सकते हैं। और इसके विरूद्ध कोई सुनवाई पूरे भारत में कहीं पर नहीं हो
सकती। जेलों के अंदर भी इन मीसा निरूद्धों, 151 दफा में बंद तथा डी.आई.आर.
कानून
में बंद सार्वजनिक व राजनैतिक लोगों के साथ
जेल अधिकारी चाहे जैसा व्यवहार करें उनकी भी कोई सुनवाई कहीं पर नहीं। वे
जुल्म पर जुल्म करते जाएं उनके सौ खून माफ।
मध्यप्रदेश
के अधिकतर जेलों में राजनैतिक मीसा बंदियों के बैरकों में घुस कर जेल अधिकारियों
ने लाठी से उन्हें खूब मारा, हाथ-पैर तोड़ा
ऐसा ही सारे भारत में हुआ। जो अधिकारी मीसा बंदी को जितना ज्यादा तंग करता, मारपीट करता, हथकड़ी बेड़ी
डालता, तथा खाने- पीने तथा अन्य किस्म से तंग करता, यहाँ तक कि उनकी दवाई, इलाज का इतंजाम
नहीं करता उस जेल अधिकारी को प्रोमोशन मिलता। उन्हें हर किस्म से भष्ट्राचार करने
की छूट रही। इस प्रकार अन्याय, भ्रष्ट्राचार, अत्याचार, गैर कानूनी
तौर-तरीके सारे सरकारी कर्मचारियों को करने की खुली छूट इंदिरा गांधी की कांग्रेस
सरकार ने दे रखी है।
इस छूट
के कारण जितने सार्वजनिक संस्थानों में विरोधी दलों के कब्जे थे उसे या तो सुपरसीड
किया गया या उसके सदस्यों या उस संस्था के डायरेक्टर व दिगर पदाधिकारियों को डरा-
धमका कर विरोधी दलों से इस्तीफा पत्र लिखवा कर उन्हें अपने दल (कांग्रेस) में
शामिल कर लिया। जिन्होंने ऐसा नहीं किया उन्हें जेल में बंद करके कांग्रेस दल को
बहुमत में बताकर वहाँ कांग्रेस का शासन कायम कराया। म्युनिसिपेलटी, मंडी, ब्लाक कमेटी, ग्राम पंचायत, जिला परिषद, सहकारी
समितियाँ, मार्केटिंग या सहकारी बैंक हो इन सभी जगह सरकारी
अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से कार्य कराया गया।
उसी
प्रकार से एम.एल.ए., एम.पी. जो विरोधी दलों के थे उन
पर दबाव डालकर, डर दिखा कर, लालच देकर
सरकारी गैर सरकारी तरीके से उनके दलों से इस्तीफा दिलवाकर कांग्रेस में शामिल किया
या फिर उन्हें जेलों में करके बंद हर
किस्म से तंग किया। इस प्रकार की मनमानी
प्रान्तीय व राष्ट्रीय स्तर के सारे प्रजातांत्रिक संस्थाओं में सरकारी
कर्मचारियों द्वारा कराया गया और विरोधी दल को अल्पमत में करके कांग्रेस के हाथ
में उस संस्था को सौंपा दिया गया। यहाँ तक कि तामिलनाडू प्रान्त में डी.एम.के. की
जो सरकार 3/4 से बहुमत में थी, उस पर भी
उल्टे- सीधे इल्जाम लगाकर भंग कर दिया और राष्ट्रपति शासन कायम किया। गुजरात सरकार
में भी कांग्रेस अल्पमत में थी। वहाँ एक साल पहले ही कांग्रेस विरोधी सरकार का
निर्माण हुआ था। वहाँ भी पर केन्द्र ने जबरदस्ती दबाव डालकर एम.एल.ए. को दल बदल कराके, लालच देकर, रिश्वत देकर
अल्पमत में किया और राष्ट्रपति शासन लागू किया।
इस तरह
इंदिरा गांधी पूरे सरकारी तंत्र का उपयोग अपनी व्यक्तिगत तथा कांग्रेस की शक्ति को
बढ़ाने के लिए खुलेआम कर रही हैं। उनके शासन में
कर्मचारियों को खुली छूट है कि वे विरोधी दलों को खत्म करने में चाहे जो
काम करे, चाहे जो रास्ता इख्तयार करें, चाहे जितना पैसा खर्च करना पड़े, उन्हें हर नाजायज तौर-तरीके को काम में लाने की पूरी
आजादी है। ऐसा करने वाले को ही प्रमोशन, प्रशंसा
मिलेगी। उन्हें आम जनता से व्यापारियों से ठेकेदारों से किसानों से, मजदूरों से, उद्योगपतियों
से, राजा महाराजाओं से लूट, रिश्वत लेने सब की छूट है।
राजनैतिक और सार्वजनिक कार्यकर्ता या जो किसी
पार्टी (विरोधी) का सदस्य है हैं उन्हें जेल अधिकारियों तथा कलेक्टर व डिप्टी
कलेक्टरों एवं पुलिस द्वारा बुलाकर कहा जाता है कि वे माफी नामे सार्वजनिक
कार्यकर्ता उसे बुलाकर सरकारी कर्मचारी जोर जबर्दस्ती लिखवा रहे हैं कि- उनका किसी
विरोधी दल से संबंध नहीं है, न पहले था, अगर है तो मैं कांग्रेस के पक्ष में इस्तीफा दे देता
हूँ। इससे पहले यदि मैंने विरोधी दल में कार्य किया है तो उसके लिए मुझे पछतावा
है। सब विरोधी पार्टी राष्ट्रद्रोही हैं, जन कल्याण
विरोधी हैं, गलत नीति वाले हैं, फास्सिट
मनोविचार के हैं,
पूंजीवादी हैं, अमेरिका के दलाल हंै, वहाँ से इन्हें
पैसा आता है। आदि आदि बाते लिखावाकर, टाइप करारर
उनसे दस्तखत लेते हैं। दस्तखत नहीं करने
पर कहते हैं तुम्हारा हर किस्म से जीना दुश्वार कर देंगे, तुम इज्जत के साथ रह नहीं सकते, तुम्हें तथा तुम्हारे रिश्तेदारों, बच्चों को जेल की सीकचों में बंद कर देंगे। तथा कहते
हैं कि दस्तखत कर दो तो हम तुम्हें छोड़ देंगे, या पेरोल दे
देंगे, या अन्य किस्म की सहूलियत दे देंगे।
जेलों
के बाहर सरकारी कर्मचारी आम लोगों को एवं खास-खास लोगों को बुला-बुलाकर कांग्रेस
का सदस्य बनाते हैं, और विरोधी दल से इस्तीफा लेते
हैं। सीधे में अगर इस्तीफा पत्र या माफी पत्र पर दस्तखत नहीं करते तो उन पर कई गलत
आरोप लगा कर हथकड़ी, बेड़ी, जेल, मुकदमे आदि की
धमकी गाँव-गाँव, मोहल्ले-मोहल्ले
जाकर देते हैं। ऐसी मनमानी करने की छूट
सारे सरकारी अधिकारियों को चाहे वह किसी भी पद पर हो दे दिया गया है। इस प्रकार से
इंदिरा गांधी ने सारे देश में एक अभियान छेड़ा है कि सारे विरोधी दल खत्म हो
जावें। विरोधी विचार का एक भी आदमी रह न पाए।
विरोधी
पार्टी के पाँच दलों (जनसंघ, कांग्रेस संगठन, समाजवादी, भारतीय लोक दल
और अकाली दल) को मिलाकर जो एक दल बनना तय किया गया है, जिसका मार्गदर्शन जयप्रकाश नारायण करेंगे उसे भी वे
नहीं बनने देना चाहते। उसे भी खत्म करना उनका प्रमुख ध्येय है। इस एक दल से डर कर, जिसका कि एक सामूहिक प्रोग्राम है- एक नेता, एक सिद्धांत, एक चुनाव चिन्ह, इंदिरा गांधी ने आपातकालीन स्थिति लागू करके ‘मीसा’ तथा कई और
अप्रजातांत्रिक कानूनों के जरिये आज 12 माह से ऊपर हो
गए अपने सभी विरोधियों को जेल में बंद करके रखा है। इतना ही नहीं अब ‘मीसा’ कानून को 24 माह तक बिना कारण बढ़ा कर अदालत में जाने के अधिकार
को भी रोक दिया है। यह कानून जो असामाजिक लोगों, गुंडों , तोड़-फोड़ करने वालों, देश द्रोहियों
तथा नंबर दो का धंधा करने वालों के लिए बना था, वह उनके लिए तो
उपयोग में नहीं आ रहा है पर वह राजनैतिक व सार्वजनिक कार्यकर्ताओं को खत्म करने, उन्हें दबाने, उन्हें तंग
करने, उन्हें नेस्तनाबूत करने के काम में आ रहा है।
इंदिरा
सरकार ने संविधान में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जो अधिकार थे उसे भी खत्म कर
उसे सीमित कर लोगों के लिए न्याय के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। संविधान में मनमाना संशोधन करके तथा
पार्लियामेन्ट को सर्वेसर्वा बनाकर उसने यह अधिकार हासिल कर लिया है कि वह सब कुछ
कर सकती है। संविधान की किसी भी धारा को चाहे वह सुप्रीम कोर्ट हो, हाई कोर्ट हो या किसी प्रान्तीय संबंधी अधिकार हो, अथवा नागरिकों के मूलभूत अधिकार ही क्यों न हो, वह सब को बदल सकती है, खत्म कर सकती, सस्पेन्ड कर सकती है।
प्रेसीडेन्ट तो उनके हाथ का खिलौना है, जब चाहे किसी भी विषय पर चाहे जैसा उनसे आर्डर करा
लेती है। इस प्रकार प्रजातंत्र को खत्म करके एकतंत्र, एक व्यक्ति का शासन हो रहा है, जैसा कि मुजब्बर रहमान ने बंगलादेश में किया, रूस में लेनिन स्टेलिन ने किया, याऊ ने चीन में किया, स्पेन में जनरल
फ्रैंको ने किया,
जर्मनी में हिटलर ने किया, इटली में मुसोलनी ने किया बंगलादेश में पाकिस्तान ने
किया। वही रवैया आज भारत में इंदिरा गांधी कर रही हैं। वह यह सब एक पार्टी या कहें
एक व्यक्ति का शासन प्रजातंत्र व समाजवाद के नाम पर कर रही हैं जैसे कि उपरोक्त
दूसरे देशों में किया गया।
अफसोस
यहाँ पत्रकारों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। समाचार-पत्रों में सरकारी ऑफिसर
जो कहेगा वही छपेगा, नहीं तो अखबार बंद। रेडियो, टेलीविजन, अखबार सभी जन -जागरण के माध्यमों को कांग्रेस ने अपनी मुट्ठी में कर लिया है।
इस
प्रकार सरकारी कर्मचारियों ने कांग्रेस को
मजबूत करने में अपना सारा समय लगा दिया है। वे हैं तो सरकारी कर्मचारी पर सचमुच
में वे सब कांग्रेस संगठन का का काम कर रहे हैं। शासन तंत्र की पूरी शक्ति
कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने तथा विरोधी दलों को जो कांग्रेस के खिलाफ हैं
उन्हें नेस्तनाबूत करने, खत्म करने, उसका अस्तित्व मिटा देने में लगे हैं।
साम्यवादी
देशों में पार्टी ही शासन करती है क्योंकि यहाँ सिर्फ एक ही पार्टी रहती है और जो
पार्टी का मुखिया होता है वही शासन तंत्र को चलाता है। कोई विरोधी दल नहीं होता और
यदि एक -दो होते भी हैं तो उसकी कोई औकात
नहीं होती, उन्हें मान्यता नहीं मिलती, वे चुनाव लड़ नहीं सकते, उन्हें कोई प्रजातांत्रिक अधिकार नहीं होता। इसी
रास्ते पर इंदिरा गांधी भी चल रहीं हैं। भारत, जो दुनिया में
अपने को सबसे बड़ा प्रजातंत्र देश है कहकर गर्व करता था, अभिमान करता था, वह अब सब खत्म
हो गया।
इंदिरा गांधी अपने 20 सूत्रीय कार्यक्रमों का प्रचार बहुत जोरों से कर
रही हैं ये वही सब कार्यक्रम हैं जिसे विरोधी दल अब तक करते आये हैं, इसमें कोई खास नई चीज नहीं है। जो कांग्रेस शासन अपने
28 वर्षों के
शासन में प्रत्येक गाँव के लोगों को पीने
के लिए पानी मुहैय्या नहीं करा सकी, हर परिवार को 10 गज की जमीन नहीं दे सकी, उन्हें भरपेट खाने को नहीं दे सकी, तन ढंकने के लिए कपड़ा नहीं दे सकी, हर एक शिक्षित को कार्य नहीं दे सकी। लोगों को
संक्रामक रोगों से बचाने का प्रबंध नहीं कर सकी। यह सब कि एक स्वतंत्र देश का सबसे
पहला कर्तव्य होता है, उसने इन सबसे वंचित कर दिया है
और आपातकालीन स्थिति लगाकर विरोधी पार्टी के
लिए इन मूलभूत अधिकारों के लिए आवाज उठाने का रास्ता बंद कर दिया है।
इंदिरा
गांधी देश विदेशों में आव्हान करती फिर रही हैं कि भारत में प्रजातंत्र है, विरोधी दल जो कहते हैं वह गलत है। वे यह भी कहती
हैं दूसरे देशों के लोग तथा दूसरे देशों
के समाचार-पत्र व दूसरे देशों के रेडियो जो कहते हैं कि भारत में प्रजातंत्र रह
नहीं गया वे सब गलत कहते हैं।
इतनी गलत बात कहते इतने बड़े देश की
प्रधानमंत्री, प्रेसिडेन्ट तथा दिग्गज मिनिस्टरों को शर्म आनी
चाहिए। वे यह भी कहते नही थकते कि सिर्फ
इने गिने लोगों को ही जेलों में रखा है और जो पकड़े गए थे उन्हें छोड़ दिया गया है
। जबकि सब जानते हैं यह सब सरासर झूठ है। मीसा में करीब 4 लाख लोग पकड़े गये थे उनमें से सिर्फ 30-40 हजार लोगों को जोर जबर्दस्ती से माफी पत्र लिखा कर
छोड़ा गया है। कुछ नेताओं को दिखाने के लिए छोड़ा है या पेरोल पर छोड़ा गया है वे
गिनती के सिर्फ 15-20 हैं। उन पर भी कई तरह के प्रतिबंध हैं कि वे अपनी
मर्जी से कहीं आ जा नहीं सकते, किसी से मिल
नहीं सकते। कुछ लोग बीमार हैं उन्हें इलाज
हेतु छोड़ा गया है, जो कि अस्पतालों में या घरों में
बीमार पड़े हैं।
मीसा या
डी.आई.आर. में जो असामाजिक लोग पकड़े गये थे उन्हें 2-4 महीने रख रखकर छोड़ते गये उनकी संख्या जरूर 95 प्र.श. हैं क्योंकि उनसे सौदा हो गया, उनसे समर्थन का वादा ले लिया गया, कांग्रेस में सदस्य बनने या उन्हें हर किस्म से मदद
करने का बांड लिखा गया, उन्हीं को वे कहते हैं कि हमने
मीसा वालों को छोड़ा जबकि वे सिर्फ असामाजिक तत्व, तस्कर व गुंड़े
हैं।
अब तो जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी
तथा बाद में उसका लड़का संजय गांधी भारत की गद्दी के लिए तैयार किया जा रहा है
जैसे जवाहरलाल के अपने लड़की को तैयार किया वैसे ही इंदिरा गांधी अपने लड़के संजय
को तैयार कर रही हैं। अब खानदानी शासन चलेगा, प्रजातंत्र का
तो अंत हो ही गया तथा सार्वजनिक नागरिकों के मूलभूत अधिकार भी खत्म हो गये।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जो कहा था वह सच निकला कि हमें इस राजनैतिक
स्वतंत्रता के मिलने पर खुश नहीं होना
चाहिए, हमें सामाजिक से आर्थिक स्वतंत्रता असल में लानी है, ग्राम स्वराज्य हमारा अंतिम लक्ष्य है। पर वह लक्ष्य
तो दूर रहा शासन विकेन्द्रीकरण के बजाय केन्द्रीकरण की ओर ज्यादा जा रही है, प्रान्तों को जो भी थोड़ा अधिकार है, उसे भी इंदिरा
नहीं चाहती सब केन्द्र में रखना चाहती है। ग्राम, जिला, ब्लाक का तो सवाल ही नहीं उठता। गांधी जी कहते थे कि ज्यादा से ज्यादा अधिकार
केन्द्र में होना गुलामी के लक्षण हैं, उनकी वह बात
ठीक निकली। ग्राम अभी भी गुलाम है, यहाँ के लोगों
को आज भी न आर्थिक, न सामाजिक और न राजनैतिक अधिकार
मिला हैं, न उनमें इसकी कोई चेतना ही आई है। यहां तक कि
देशभक्ति की शिक्षा भी नहीं दी जाती, लोग अपने खुद
में इतने सीमित होते जा रहे हैं कि देश का ख्याल दिमाग में ही नहीं है। जो देश वन्दे-मातरम् गीत को संप्रादायिक कहता
है, जिस वन्दे-मातरम् की बदौलत लाखों लोगों ने अपनी
कुर्बानी दी, जिस एक गीत ने देश भक्ति तथा देश के नवजवानों को एक
सूत्र में बांधने का नारा दिया, जिस वन्दे
मातरम् का नाम लेकर लोग हंसते-हंसते अपने देश के लिए कुर्बान हो गए, फांसी के तख्ते पर चढ़ गए, वह संप्रदायिक कैसे हो गया? दु:ख है इस भावना से, दु:ख है इस
विचार धारा से। जो अपने देश की संस्कृति पर अभिमान नहीं करता है, जो अपने देश के प्रति कुर्बानी की भावना नहीं रखता, वह न देश का नागरिक हैं और न देश में रहने योग्य है।
जो
पार्टी देश के दो टुकड़ों में कर देती है, जो भारत माता
को अपनी नहीं मानती, जो यहाँ की संस्कृति के प्रति
उदासीन ही नहीं उसे अपनाना ही नहीं चाहती वह मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ है, जिस कम्युनिस्ट पार्टी ने आजादी की लड़ाई में देश
द्रोह करके अंग्रेजों का साथ दिया, इस भारत देश के
प्रति उनका कोई लगाव नहीं, श्रद्धा नहीं, उनका लगाव रूस की ओर है, वही कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे गद्दारों को साथ में
लेकर इंदिरा गांधी कहती हैं कि वे सब देश-भक्त नहीं है जिन्होंने देश के लिए
कुर्बानी देकर, देश भक्ति का पाठ पढ़ाया है। जो इस भारत मां के
प्रति हर मौके पर बलिदान पर चढऩे को तैयार हैं, जो यहाँ की
संस्कृति को गौरवशाली मानते हैं, देश के निर्माताओं यथा राम, कृष्ण, अशोक, गौतम, शंकराचार्य, महावीर, कबीर, तुलसी, नानक, स्वामी रामदास, तथा यहाँ के
साहित्य वेद गीता,
पुराण के रचियता आदि के प्रति
नतमस्तक हैं, जो वीर महाराणा प्रताप, रानी दुर्गावती, शिवाजी, रणजीतसिंह आदि देश को गुलामी से मुक्त करने वालों के
प्रति नतमस्तक हैं, उस पार्टी को इंदिरा गांधी कहती
हैं कि ये लोग देशद्रोही व संकीर्ण विचार धारा के हैं। ये लोक- कल्याण के लिए देश
का जरा भी कार्य नहीं करते तथा इनका अंत होना चाहिए। याने वह सिर्फ कांग्रेस
पार्टी को ही देश भक्त कहती हैं उसी को ही जिंदा रखना चाहती हैं बाकी को खत्म करके
एक तंत्र शासन चलाना चाहती हैं। क्या यही प्रजातंत्र है? क्या यही लोकतंत्र है? इसीलिए क्या
महात्मा गांधी के समर्थक जयप्रकाश नारायण, अशोक मेहता, मोरारजी देसाई, निजलिंगअप्प्पा, हेडगेवार, जे.बी. कृपलाणी, अटल बिहारी बाजपेयी आदि ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़
कर तानाशाही को प्रोत्साहन के लिए यह दिन देखे, भारत के
क्रांतिकारी शहीदों ने अपने प्राण-न्यौछावर किए? वीरसावरकर, स्वामी
श्रद्धानंद, भगत सिंह, आजाद, लाला लाजपतराय, लोक मान्य बाल
गंगाधर तिलक, नेता जी सुभाष चंद्र बोस जेल में यातनाएं भोगीं और अंत में अपने प्राण देश हित
में गवाएं यह सब क्या इसी इंदिरा गांधी के प्रजातंत्र और समाजवाद के लिए?
इंदिरा
जी कहती है कि हमने जो अभी तक किया सिर्फ आर्थिक रूप से देश के सुधार के लिए, पर यह दावा गलत है, झूठ है। यह जो
भी 12 महीनों में कार्य किया सिर्फ प्रजातंत्र को खत्म
करने तथा विरोधी राजनैतिक दलों को कुचलने तथा उनसे अस्तित्व को अंत करने के लिए
है। इस दौरान जरा भी आर्थिक स्थिति का सुधार नहीं हुआ। बल्कि, आर्थिक दृष्टिï से हम और नीचे
गिरे। जो देश द्वितीय महायुद्ध में -जापान व जर्मनी- एकदम रौंद डाले गये थे
नेस्तनाबूत कर दिये गये थे, वे ही आज हमें
मदद कर रहे हैं,
वही देश अपने पैरों पर खड़े हैं, अभी ही पश्चिमी जर्मनी ने हमें 138 करोड़ की मदद की। देश भक्त लोगों का देश ऐसा होता
है जैसा जापान और पश्चिमी जर्मनी। पूर्वी जर्मनी अभी भी रूस का गुलाम हैं। रूस ने
तो अपने को ऐसा बना लिया कि वह अपना साम्राज्य चारों ओर फैलते जा रहा है जैसे उसने
पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, युगोस्लोविया
तथा अन्य छोटे-छोटे यूरोप के देशों पर कब्जा कर लिया है। चीन के नेफा तथा कोरिया, वियतनाम आदि पर अपना वर्चस्व करके उसने भी
साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को अपना लिया है। ऐसे देशों से इंदिरा गांधी प्रजातंत्र
कायम करने की आशा करती हैं। पहले उनके कारनामे देखें फिर उनकी मदद लेवें या उन पर
भरोसा करें।
अंग्रेजो के शासन काल में भी सरकारी कर्मचारी
इतना ज्यादा शासन का पक्ष नहीं लेते थे, न शासन को
चुनाव में इतना घसीटा करते थे। इन्हें चुनाव की राजनीति से काफी अलग रखते थे।
जेलों में भी अंग्रेजों ने राजनैतिक बंदियों पर इतना जुल्म नहीं किया जितना अब
किया जा रहा है। जबकि हम राजनैतिक मीसा विरूद्ध है तब भी उनसे एक कातिल से भी अधिक
खराब व्यवहार किया जाता है। इन सबके बाद भी इंदिराजी हर मामले में चाहे वह समाचार
पत्र के संबंध में हो चाहे कालेज के विद्यार्थियों के संबंध में हो, चाहे राजनैतिक पार्टी के संबंध में हो रोज झूठा
प्रचार रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्रों
तथा जगह-जगह सभा करके ऐलान कर रही हैं कि लोगों को राहत मिल गई।
इन सबके
बाद भी जो भी राजनैतिक मीसा विरूद्ध हैं उनने ठान लिया है कि चाहे जितने दिन भी
हों वे जेलों में रहने को तैयार हैं। पर इंदिरा गांधी उनके विचारों को, उनके गतिविधियों को खत्म नहीं कर सकती, क्योंकि उनका उद्देश्य सच्चा, ईमानदारी का, देश के उत्थान के लिए है। वे कहते हैं कि 28 वर्षों में
देश के साथ जो गलत हुआ है और होते जा रहा है उसे उत्थान की और ले जाना उनका फर्ज
है, उनका कर्तव्य है, नहीं तो वे इस
भारत देश के नागरिक होने लायक नहीं है। ऐसे विचारों को सुनकर मुझे पूर्ण विश्वास
है कि देश जागेगा तथा इंदिरा गांधी के इस अत्याचारी, अन्यायी शासन
तथा भ्रष्टाचार के अप्रजातांत्रिक तरीके को लोग खत्म जरूर करेंगे।
विरोधी दलों पर, नेताओं पर
इंदिरा गांधी इलजाम लगाती हैं कि विरोधी दल को अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान नहीं है, किस प्रकार से देश में विरोधी दल को कार्य करना
चाहिए, उनका कर्तव्य क्या है उनमें समझ नहीं, वे कहती हैं कि वे लोगों में शासन के प्रति बगावत
फैलाते हैं, राज्य के पुलिस, देश की सेना
तथा कर्मचारियों को विद्रोह के लिए उकसाते हैं, पर यह सब झूठ
है। हम विरोधी दल के लोगों को अपने
उत्तरदायित्व का ज्ञान है, हम जानते हैं
कि दासताबद्ध देश को कैसे ऊँचा उठाना है, हमें यदि
देशद्रोही हिंसक कहते हैं तो हमें इसकी परवाह नहीं है। शासन में जो लगातार 28 वर्षों से बैठे हैं तथा उनके इस शासन काल में देश
चाहे कितना भी गरीब हो गया हो पर उन्हें सिर्फ अपनी गद्दी की ही चिन्ता है। जिस
देश के शासन ने आजादी के पहले के सारे सपनों को खाक में मिलाकर लोगों को निर्धन
किया, जिस शराब और अफीम के खिलाफ लाखों लोगों ने अपनी बली
दी उसे ही बेच कर सरकार ने लोगों की बुद्धि भ्रष्टï कर, श्रमजीवियों को
बेघर- बार कर दिया है कि उन्हें आज तक 10 फुट जमीन भी
रहने को न मिली।
जिसने
भी इन सबके विरूद्ध आवाज उठाई उन्हें लाठी और गोलियाँ मिली। आखिर प्रजातंत्र तथा
न्याय की दुहाई देकर इंदिरा गांधी प्रजातंत्र और न्याय की हंसी क्यों उड़ा रही हैं?
हम इतना ही कह सकते हैं कि हम देश की सच्ची सेवा
कर रहे हैं, भले ही हम अभी नया पौधा न लगा पावें, पर औरों के प्रयत्न के लिए तो सच्चा सुलभ रास्ता व
स्थानबना ही देंगे। जिससे देश स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर तथा
संपन्न बन सके, प्रजातंत्र की रक्षा कर सके, तथा लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागृति कर सके।
देश की
असल जड़ ग्राम में होनी चाहिए। भारत देश में सब कुछ है, खुशहाली के सारे साधन हैं, यही वजह है कि एक समय भारत सोने की चिडिय़ा कहलाती
थी। विश्व भर में यहाँ की सभ्यता, संस्कृति यहाँ
का ऐश्वर्य जगजाहिर था। भारत हर दिशा में शिक्षा, कला-कौशल, साहित्य, स्वतंत्र जीवन, पूर्ण विकास के अवसर तथा बगैर जातियता, धर्म तथा वर्ग संघर्ष के एक विशालसांस्कृतिक एकता
में बंधा था। लोगों में देश के प्रति प्रेम तथा समाज व देश के लिए बलिदान करने की
तमन्ना थी।
पर
सैकड़ों साल की गुलामी ने हमें सिर्फ निर्धन ही नहीं किया वरन हर किस्म की कमजोरी
भी ला दी, हम स्वाभिमानी तथा आत्मनिर्भर तो रहे पर हम गुलाम
होकर हर बात के लिए दूसरों के सहारे जीने के आदी हो गये। सार्वजनिक रूप से सोचने, समझने तथा कार्य करने की क्षमता जाती रही। हम अपनत्व
भूल गये, हम सिर्फ अपने पुराने गौरव की गाथा गाते रहे, पर हममें उन गौरवमय जीवन तथा स्थिति को कायम रखने की
न इच्छा रही, न शक्ति रही। हम आपस में एक दूसरे से दूर होकर
दूसरों के टुकड़ों पर दूसरों के विचारों पर जीने के आदी हो गये।
अत: अब
हमें देश को जागिृत करना है, लोगों को नई
दिशा देना है, गुलामी से हममें जो विकृति आई है उसे दूर कर अपनत्व
तथा अपने पुरूषार्थ पर भरोसा करके देश का निर्माण नई दिशा की ओर करना है।
राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के
लिए देश में एक ऐसा आंदोलन करना होगा जिससे हम अपने प्रजातंत्र तथा अपने मूलभूत
नागरिक अधिकारों की रक्षा करते हुए देश को खुशहाली की और ले जाये। यही सारे विरोधी
दलों की इच्छा है,
जिसे इंदिरा जी नहीं चाहती।
प्रस्तुतकर्ता udanti.com पर 10:32 pm
लेबल: जेल डायरी - किश्त एक
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