रविवार, 26 जून 2016

मेरे बाबूजी की जेल डायरी

कांग्रेस प्रवेश के बाद राजनीतिक उठापटक का दौर - किश्त पांच 
राजनीति में सक्रियता और पिताजी की बीमारी -किश्त चार
हिरनखेड़ा सेवा सदन के वे दिन ..- किश्त तीन
मीसा में गिरफ्तारी और जेल में बचपन की यादें - किश्त दो
- छीन लिए गए नागरिकों के मूल अधिकार - किश्त एक
- छत्तीसगढ़ का किसान-पलारी गाँव से भोपाल और दिल्ली तक का सफर
श्री बृजलाल वर्मा / जीवन परिचय


आपातकाल की कहानी बाबूजी की जुबानी  

26 जून 1975 से इंदिरा गांधी द्वारा पूरे देश में आपातकाल लगाते ही कांग्रेस विरोधी राजनैतिक दलों के प्रमुख तथा सक्रिय कार्यकर्ताओं को देश भर के विभिन्न जेलों में बंद कर दिया गया। मेरे बाबूजी (बृजलाल वर्मा) भी उनमें से एक थे। आपातकाल के दौरान जेल में रहते हुए उन्होंने अपने जीवन की यादों को डायरी के रुप में लिखना आरंभ किया और उन 22 महीनों में उन्होंने इसमें अपने बचपन से लेकर शिक्षा, वकालत, परिवार और फिर राजनीतिक जीवन की घटनाओं को सिलसिलेवार लिखते चले गए। यह जेल डायरी एक प्रकार से उनका जीवन वृतांत है। उनकी लिखी ये डायरी मेरी माँ के पास बरसों तक सुरक्षित रखी रहीं। अपने जीवन काल में बाबूजी ने भी कभी इनकी ओर पलट कर नहीं देखा और न इनके प्रकाशन की दिशा में कोई प्रयास किया। उनके चले जाने के कई बरसों बाद जब मैंने इन्हें पढ़ऩे के लिए बाहर निकाला तो मेरे मन में इसके प्रकाशन की बात आई। आपातकाल की 30 वीं बरसी पर सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ के संपादक सुनील कुमार जी से इस डायरी के संदर्भ में बात हुई तब उन्होंने  साप्ताहिक पत्रिका इतवारी अखबार में (उन दिनों मैं इस पत्रिका में सहायक संपादक के रुप में कार्य कर रही थी) इसे किश्तवार प्रकाशित करने का जिम्मा उठाया। इस तरह 22 जून 2008 से 15 फरवरी 2009 तक प्रति सप्ताह मेरे बाबूजी की जेल डायरी के अंश आपातकाल की कहानी बाबूजी की जुबानी  शीर्षक से क्रमश: प्रकाशित किए गए। सुनील कुमार जी का आभार मानते हुए मैं इसे अपने ब्लाग में क्रमशः पुनः प्रकाशित कर रही हूँ मेरे बाबूजी की जेल डायरी शीर्षक से।

संपादन - डॉ.  रत्ना वर्मा

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