छीन लिये गए नागरिकों के मूलभूत अधिकार
मेडिकल कॉलेज जबलपुर 21-6- 1976

26 जून 1975 से इंदिरा गांधी द्वारा पूरे देश में आपातकाल लगाते ही
सारे कांग्रेस विरोधी राजनैतिक दलों के प्रमुख को तथा सक्रिय कार्यकर्ताओं को एक
साथ उसी दिन जेलों में बंद कर दिया गया। इसके बाद सार्वजनिक संस्थाएँ, जो कांग्रेस की अनुगामी न होकर स्वतंत्र रूप से चलती थीं
तथा देश व जनहित का कार्य करती थीं उन्हें भी गैर कानूनी करार देकर उनके सारे
कार्यकर्ताओं को भी जेलों में ‘मीसा’ कानून के अंतर्गत बंद कर दिया। किसी को कोई
कारण नहीं बतलाया गया कि उन्हें क्यों जेल में डाला गया। जब लोगों ने जवाब चाहा
तो 29 जून को तत्काल ऑर्डिनेंस द्वारा ‘मीसा’ कानून में यह
परिवर्तन कर दिया कि ‘मीसा’ निरुद्धों को कोई कारण बतलाने की जरूरत नहीं। इतना ही
नहीं,
न ही अदालत को कारण बतलाने की जरूरत महसूस की गई और न किसी
मीसा निरुद्धों को अदालतों में जाने का हक होगा- कह दिया गया।
इसी के साथ संविधान में
दिए गए नागरिकों के सभी मूलभूत अधिकार आपातकाल के दौरान खत्म कर दिए गए। वे सारे
अधिकार कार्य पालिका को यानी कलेक्टर तथा पुलिस को दे दिए गए । जिसमें वे बिना किसी भी वजह से बगैर कारण बताए
मीसा कानून में या दफा 151 के
अंतर्गत, किसी भी
व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेलों में चाहे जितने दिनों तक बंद रख सकते हैं। उन्हें यह
पूछने का भी कोई अधिकार नहीं होगा कि उन्हें जेल में क्यों बंद किया गया और कब तक
उन्हें जेल में रहना होगा? यही नहीं
यह कानून उनके साथ किसी भी प्रकार का
मनमाना व्यवहार जैसे मारपीट, गाली-गलौज, उनके
जमीन- जायदाद की तोड़-फोड़ आदि बिना कोई कारण बताए कर सकते हैं। इतना ही नहीं वे उनके परिवार के लोगों को, रिश्तेदारों को या दोस्तों को भी परेशान कर सकते हैं। इसके
विरुद्ध कोई भी सुनवाई पूरे भारत में कहीं पर भी नहीं हो सकती।
जेलों के अंदर भी इन मीसा निरुद्धों, 151 दफा में बंद तथा डी.आई.आर. कानून में बंद सार्वजनिक व
राजनैतिक लोगों के साथ जेल अधिकारी चाहे जैसा व्यवहार करें उनकी भी कोई सुनवाई
कहीं पर नहीं । वे जुल्म पर जुल्म करते जाएँ, उनके सौ खून माफ।
मध्यप्रदेश के अधिकतर
जेलों में राजनैतिक मीसा बंदियों के बैरकों में घुसकर जेल अधिकारियों ने लाठी से
उन्हें खूब मारा, हाथ-पैर
तोड़े। ऐसा ही सारे भारत में हुआ। जो
अधिकारी मीसा बंदी को जितना ज्यादा तंग करता, मारपीट करता, हथकड़ी बेड़ी डालता, तथा खाने- पीने तथा अन्य किस्म से तंग करता, यहाँ तक कि उनकी दवाई, इलाज का इंतजाम नहीं करता, उस जेल अधिकारी को प्रमोशन मिलता। उन्हें हर किस्म से
भ्रष्टाचार करने की छूट रही । इस प्रकार का अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार
गैर कानूनी तौर-तरीके सारे सरकारी कर्मचारियों को करने की खुली छूट इंदिरा
गांधी की कांग्रेस सरकार ने दे रखी है।
इस छूट के कारण जितने
सार्वजनिक संस्थानों में विरोधी दलों के कब्जे थे, उसे या तो सुपरसीड किया गया या उसके सदस्यों या उस संस्था
के डायरेक्टर व अन्य पदाधिकारियों को डरा- धमकाकर विरोधी दलों से इस्तीफा पत्र
लिखवा कर उन्हें अपने दल (कांग्रेस) में शामिल कर लिया। जिन्होंने ऐसा नहीं किया
उन्हें जेल में बंद करके कांग्रेस दल को बहुमत में बताकर वहाँ कांग्रेस का शासन
कायम कराया। म्युनिसिपैलिटी, मंडी, ब्लॉक कमेटी, ग्राम पंचायत, जिला परिषद, सहकारी समितियाँ, मार्केटिंग या सहकारी बैंक, इन सभी
जगह सरकारी अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से कार्य कराया गया।
उसी प्रकार से एम.एल.ए., एम.पी. जो विरोधी दलों के थे, उन पर दबाव डालकर, डर दिखाकर, लालच
देकर सरकारी - गैर सरकारी तरीके से उनसे अपने ही दलों से इस्तीफा दिलवाकर कांग्रेस
में शामिल किया या नहीं करने पर उन्हें जेलों में बंद करके हर किस्म से तंग किया।
इस प्रकार की मनमानी प्रान्तीय व राष्ट्रीय स्तर के सभी प्रजातांत्रिक संस्थाओं
में सरकारी कर्मचारियों द्वारा कराया गया। इस प्रकार विरोधी दल को अल्पमत में करके
कांग्रेस के हाथ में उस संस्था को सौंपा दिया गया। यहाँ तक कि तमिलनाडु प्रान्त
में डी.एम.के. की जो सरकार 3/4
से बहुमत में थी, उस पर भी
उल्टे- सीधे इल्जाम लगाकर भंग कर दिया और राष्ट्रपति शासन कायम किया। गुजरात सरकार
में भी कांग्रेस अल्पमत में थी। वहाँ एक साल पहले ही कांग्रेस विरोधी सरकार का
निर्माण हुआ था। वहाँ भी पर केन्द्र ने जबरदस्ती दबाव डालकर एम.एल.ए. को दल बदल
कराके,
लालच देकर, रिश्वत
देकर अल्पमत में किया और राष्ट्रपति शासन लागू किया।
इस तरह इंदिरा गांधी, पूरे सरकारी तंत्र का उपयोग अपनी व्यक्तिगत तथा कांग्रेस की
शक्ति को बढ़ाने के लिए खुलेआम कर रही हैं । उनके शासन में कर्मचारियों को खुली
छूट है कि वे विरोधी दलों को खत्म करने में चाहे जो काम करें, चाहे जो रास्ता इख्तियार करें, चाहे जितना पैसा खर्च करना पड़े, उन्हें हर नाजायज तौर-तरीके को काम में लाने की पूरी आजादी
है। ऐसा करने वाले को ही प्रमोशन और प्रशंसा मिलेगी । उन्हें आम जनता से, व्यापारियों से, ठेकेदारों से, किसानों से, मजदूरों से, उद्योगपतियों से, राजा-
महाराजाओं से, लूट, रिश्वत आदि लेने की पूरी छूट है। राजनैतिक और सार्वजनिक
कार्यकर्ता या जो किसी पार्टी (विरोधी ) का सदस्य है, उन्हें जेल अधिकारियों तथा कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टरों एवं
पुलिस द्वारा बुलाकर कहा जाता है कि वे माफी नामा लिखें। सार्वजनिक कार्यकर्ताओं
को बुलाकर जोर जबरदस्ती से लिखवा रहे हैं कि- उनका किसी विरोधी दल से सम्बंध नहीं
है,
न पहले था, अगर
है, तो मैं कांग्रेस के पक्ष में इस्तीफा दे
देता हूँ। इससे पहले यदि मैंने विरोधी दल में कार्य किया है, तो उसके लिए मुझे पछतावा है । सब
विरोधी पार्टी राष्ट्रद्रोही हैं, जन- कल्याण विरोधी हैं, गलत नीति वाले हैं, फास्सिट मनोविचार के हैं, पूँजीवादी हैं, अमेरिका के दलाल हैं, वहाँ से इन्हें पैसा आता है। आदि अनेक बाते लिखवाकर, टाइप कराकर उनसे दस्तखत लेते हैं। दस्तखत नहीं करने पर कहते
हैं- तुम्हारा हर किस्म से जीना दुश्वार कर
देंगे, तुम इज्जत के साथ रह
नहीं सकते, तुम्हें तथा तुम्हारे
रिश्तेदारों, बच्चों को जेल की सीखचों
में बंद कर देंगे। तथा कहते हैं कि दस्तखत कर दो तो हम तुम्हें छोड़ देंगे, या पैरोल दे देंगे, या अन्य किस्म की सहूलियत दे देंगे। जेलों के बाहर सरकारी
कर्मचारी आम लोगों को एवं खास-खास लोगों को बुला-बुलाकर कांग्रेस का सदस्य बनाते
हैं,
और विरोधी दल से इस्तीफा लेते हैं । सीधे में अगर इस्तीफा
पत्र या माफी पत्र पर दस्तखत नहीं करते, तो उन पर कई गलत आरोप लगाकर हथकड़ी, बेड़ी, जेल, मुकदमे आदि की धमकी गाँव-गाँव, मोहल्ले-मोहल्ले जाकर देते हैं। ऐसी मनमानी करने की छूट
सारे सरकारी अधिकारियों को, चाहे वह
किसी भी पद पर हो, दे दी गई है। इस प्रकार से
इंदिरा गांधी ने सारे देश में एक अभियान छेड़ा है कि सारे
विरोधी दल खत्म हो जाएँ। विरोधी विचार का एक भी आदमी रह न पाए।
विरोधी पार्टी के पाँच
दलों (जनसंघ, कांग्रेस संगठन, समाजवादी, भारतीय
लोक दल और अकाली दल) को मिलाकर जो एक दल बनना तय किया गया है, जिसका मार्गदर्शन जयप्रकाश नारायण करेंगे, उसे भी वे नहीं बनने देना चाहते। उसे भी खत्म करना उनका
प्रमुख ध्येय है। इस एक दल से डरकर, जिसका कि एक सामूहिक प्रोग्राम है- एक नेता, एक सिद्धांत, एक चुनाव चिह्न, इंदिरा गांधी ने आपात्कालीन स्थिति लागू करके ‘मीसा’ तथा कई
और अप्रजातांत्रिक कानूनों के जरिए आज 12 माह से ऊपर हो गए अपने सभी विरोधियों को जेल में बंद करके
रखा है। इतना ही नहीं अब ‘मीसा’ कानून को 24 माह तक बिना कारण बढ़ा कर अदालत में जाने के अधिकार को भी
रोक दिया है। यह कानून जो असामाजिक लोगों, गुंडों, तोड़-फोड़
करने वालों, देशद्रोहियों तथा
नंबर दो का धंधा करनेवालों के लिए बना था, वह उनके लिए तो उपयोग में नहीं आ रहा है पर वह राजनैतिक व
सार्वजनिक कार्यकर्ताओं को खत्म करने, उन्हें दबाने, उन्हें तंग करने, उन्हें नेस्तनाबूद करने के काम में आ रहा है ।
इंदिरा सरकार ने संविधान
में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जो अधिकार थे, उसे भी खत्म कर उसे सीमित कर लोगों के लिए न्याय के सारे
रास्ते बंद कर दिए हैं। संविधान में मनमाना संशोधन करके तथा पार्लियामेन्ट को
सर्वेसर्वा बनाकर उसने यह अधिकार हासिल कर लिया है कि वह सब कुछ कर सकती है।
संविधान की किसी भी धारा को, चाहे
वह सुप्रीम कोर्ट हो, हाई
कोर्ट हो या किसी प्रान्त सम्बंधी अधिकार हो, अथवा नागरिकों के मूलभूत अधिकार ही क्यों न हो, वह सब को बदल सकती है, खत्म कर सकती, सस्पेण्ड कर
सकती है।
प्रेसीडेन्ट तो उनके हाथ
का खिलौना है, जब चाहे किसी भी विषय
पर चाहे जैसा उनसे आर्डर करा लेती हैं। इस प्रकार प्रजातंत्र को खत्म करके एकतंत्र, एक व्यक्ति का शासन हो रहा है, जैसा कि मुजीबुर रहमान ने बंगलादेश में किया, रूस में लेनिन, स्टालिन ने किया, याऊ ने चीन में किया, स्पेन में जनरल फ्रैंको ने किया, जर्मनी में हिटलर ने किया, इटली में मुसोलनी ने किया बंगलादेश में पाकिस्तान ने किया ।
वही रवैया आज भारत में इंदिरा गांधी रही हैं। यह सब एक पार्टी या कहें एक व्यक्ति
का शासन प्रजातंत्र व समाजवाद के नाम पर कर रही हैं, जैसे कि उपर्युक्त दूसरे देशों में किया गया।
अफसोस, यहाँ पत्रकारों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
समाचार-पत्रों में सरकारी ऑफिसर जो कहेगा, वही छपेगा, नहीं तो अखबार बंद। रेडियो, टेलीविजन, अखबार
सभी जन -जागरण के माध्यमों को कांग्रेस ने अपनी मुट्ठी में कर लिया है। इस प्रकार
सरकारी कर्मचारियों ने कांग्रेस को मजबूत करने में अपना सारा समय लगा दिया है। वे
हैं, तो सरकारी कर्मचारी पर सचमुच में वे सब कांग्रेस संगठन का
काम कर रहे हैं । शासन- तंत्र की
पूरी शक्ति कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने तथा विरोधी दलों को, जो कांग्रेस के खिलाफ हैं, उन्हें नेस्तनाबूद करने, खत्म करने, उसका
अस्तित्व मिटा देने में लगे हैं।
साम्यवादी देशों में
पार्टी ही शासन करती है; क्योंकि
यहाँ सिर्फ एक ही पार्टी रहती है और जो पार्टी का मुखिया होता है वही शासन तंत्र
को चलाता है। कोई विरोधी दल नहीं होता और यदि एक -दो होते भी हैं तो उसकी कोई औकात
नहीं होती, उन्हें
मान्यता नहीं मिलती, वे चुनाव
लड़ नहीं सकते, उन्हें कोई
प्रजातांत्रिक अधिकार नहीं होता। इसी रास्ते पर इंदिरा गांधी भी चल रहीं हैं ।
भारत,
जो दुनिया में अपने को सबसे बड़ा प्रजातंत्र देश है कहकर
गर्व करता था, अभिमान करता था, वह अब सब खत्म हो गया।
इंदिरा गांधी अपने 20 सूत्रीय कार्यक्रमों का प्रचार बहुत जोरों से कर रही
हैं। ये वही सब कार्यक्रम हैं, जिसे विरोधी दल अब तक करते आए हैं, इसमें कोई खास नई चीज नहीं है। जो कांग्रेस शासन अपने 28 वर्षों के शासन में प्रत्येक गाँव के लोगों को पीने के लिए
पानी मुहैया नहीं करा सकी, देश के
प्रत्येक परिवार को रहने के लिए 10
गज जमीन नहीं दे सकी, उन्हें
भरपेट खाने को नहीं दे सकी, तन ढकने
के लिए कपड़ा नहीं दे सकी, हर एक
शिक्षित को कार्य नहीं दे सकी, लोगों को संक्रामक रोगों से बचाने का प्रबंध नहीं कर सकी, जबकि यह सब एक स्वतंत्र देश का सबसे पहला कर्तव्य होता है।
उस सरकार ने देश को इन सबसे वंचित कर दिया है और इस प्रकार विरोधी पार्टियों के
लिए मूलभूत अधिकारों के लिए आवाज उठाने के सभी रास्ते बंद कर दिए।
इंदिरा गांधी देश विदेशों में आवाहन करती फिर रही हैं कि
भारत में प्रजातंत्र है, विरोधी
दल जो कहते हैं, वह गलत है। वे यह भी
कहती हैं कि दूसरे देशों के लोग तथा दूसरे देशों के समाचार-पत्र व दूसरे देशों के
रेडियो जो कहते हैं - कि भारत में प्रजातंत्र नहीं रह नहीं गया वे सब गलत कहते
हैं। इतनी गलत बात कहते हुए इतने बड़े देश
की प्रधानमंत्री, प्रेसिडेंट
तथा दिग्गज मंत्रियों को शर्म आनी चाहिए। वे यह भी कहते नहीं थकते कि सिर्फ इने- गिने लोगों को ही जेलों में रखा है और जो पकड़े
गए थे, उन्हें छोड़ दिया गया है। जबकि सब जानते
हैं यह सब सरासर झूठ है। मीसा में करीब 4 लाख लोग पकड़े गए थे उनमें से सिर्फ 30-40 हजार लोगों को जोर जबरदस्ती से माफी पत्र लिखवाकर छोड़ा
गया है। कुछ नेताओं को दिखाने के लिए छोड़ा है या पैरोल पर छोड़ा गया है, वे गिनती के सिर्फ 15-20 हैं। उनपर भी कई तरह के प्रतिबंध हैं कि वे अपनी मर्जी से
कहीं आ जा नहीं सकते, अपनों से
मिल नहीं सकते । कुछ लोग बीमार हैं, उन्हें इलाज हेतु छोड़ा गया है, जो कि अस्पतालों में या घरों में बीमार पड़े हैं। मीसा या
डी.आई.आर. में जो असामाजिक लोग पकड़े गए थे, उन्हें 2-4 महीने रख- रखकर छोड़ते गए। उनकी संख्या जरूर 95 प्रतिशत हैं; क्योंकि उनसे सौदा हो गया, उनसे समर्थन का वादा ले लिया गया, कांग्रेस में सदस्य बनने या उन्हें हर किस्म से मदद करने का
बांड लिखा गया, उन्हीं को वे कहते
हैं कि हमने मीसा वालों को छोड़ा, जबकि
वे सिर्फ असामाजिक तत्त्व, तस्कर
व गुंडे हैं ।
अब तो जवाहरलाल नेहरू के
बाद इंदिरा गांधी तथा बाद में उनके पुत्र संजय गांधी को भारत की गद्दी के लिए
तैयार किया जा रहा है, जैसे
जवाहरलाल ने अपनी बेटी को तैयार किया, वैसे ही इंदिरा गांधी
अपने बेटे संजय को तैयार कर रही हैं। अब खानदानी शासन चलेगा, प्रजातंत्र का तो अंत हो ही गया तथा सार्वजनिक नागरिकों के
मूलभूत अधिकार भी खत्म हो गए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जो कहा था, वह सच निकला कि हमें इस राजनैतिक
स्वतंत्रता के मिलने पर खुश नहीं होना चाहिए, हमें सामाजिक से आर्थिक स्वतंत्रता लानी है, ग्राम स्वराज्य हमारा अंतिम लक्ष्य है।
पर वह लक्ष्य तो दूर रहा
शासन विकेन्द्रीकरण के बजाय केन्द्रीकरण की ओर ज्यादा जा रही है, प्रान्तों को जो भी थोड़ा अधिकार है, उसे भी इंदिरा गांधी नहीं चाहती, सब अधिकार केन्द्र में रखना चाहती हैं । ग्राम, जिला, ब्लाक
का तो सवाल ही नहीं उठता। गांधी जी कहते थे कि ज्यादा से ज्यादा अधिकार केन्द्र
में होना गुलामी के लक्षण हैं, उनकी
वह बात ठीक निकली ग्राम अभी भी गुलाम है, यहाँ के लोगों को आज भी न आर्थिक, न सामाजिक और न राजनैतिक अधिकार मिला हैं, न उनमें इसकी कोई चेतना ही आई है। यहाँ तक कि देशभक्ति की
शिक्षा भी नहीं दी जाती, लोग स्वयं
में इतने सीमित होते जा रहे हैं कि देश का ख्याल दिमाग में ही नहीं है। जो देश
वन्दे मातरम् गीत को सांप्रदायिक कहता है, जिस वन्दे मातरम् की बदौलत लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी, जिस एक गीत ने देश भक्ति तथा देश के नवजवानों को एक सूत्र
में बाँधने का नारा दिया, जिस
वन्दे मातरम् का नाम लेकर लोग हँसते-हँसते अपने देश के लिए कुर्बान हो गए, फाँसी के तख्त पर चढ़ गए, वह सांप्रदायिक कैसे हो गया ? दुःख है इस भावना से, दुःख है इस विचार धारा से । जो अपने देश की संस्कृति पर अभिमान नहीं करता है, जो अपने देश के प्रति कुर्बानी की भावना नहीं रखता, वह न देश का नागरिक हें और न देश में रहने योग्य है।
जो पार्टी देश को दो
टुकड़ों में कर देती है, जो भारत
माता को अपना नहीं मानती, जो यहाँ
की संस्कृति के प्रति उदासीन ही नहीं उसे अपनाना ही नहीं चाहती वह मुस्लिम लीग
कांग्रेस के साथ है, जिस कम्युनिस्ट
पार्टी ने आजादी की लड़ाई में देश द्रोह करके अंग्रेजों का साथ दिया, इस भारत देश के प्रति उनका कोई लगाव नहीं, श्रद्धा नहीं, उनका लगाव रूस की ओर है, वही कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे गद्दारों को साथ में लेकर
इंदिरा गाँधी कहती हैं कि वे सब देश-भक्त नहीं है जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी
देकर,
देश भक्ति का पाठ पढ़ाया है। जो इस भारत माँ के प्रति हर
मौके पर बलिवेदी पर चढ़ने को तैयार हैं, जो यहाँ की संस्कृति को गौरवशाली मानते हैं, देश के निर्माताओं यथा राम, कृष्ण, अशोक, गौतम, शंकराचार्य, महावीर, कबीर, तुलसी, नानक, स्वामी रामदास, तथा यहाँ के साहित्य- वेद, गीता, पुराण
के रचयिता आदि के प्रति नतमस्तक हैं, जो वीर महाराणा प्रताप, रानी दुर्गावती, शिवाजी, रणजीतसिंह
आदि देश को गुलामी से मुक्त करने वालों के प्रति नतमस्तक हैं, उस पार्टी को इंदिरा गाँधी कहती हैं कि ये लोग देशद्रोही व
संकीर्ण विचारधारा के हैं। ये लोक- कल्याण के लिए देश का जरा भी कार्य नहीं करते
तथा इनका अंत होना चाहिए। अर्थात वे सिर्फ कांग्रेस पार्टी को ही देश भक्त कहती
हैं उसी को ही जिंदा रखना चाहती हैं बाकी को खत्म करके एक तंत्र शासन चलाना चाहती
हैं। क्या यही प्रजातंत्र है? क्या
यही लोकतंत्र है? इसीलिए
क्या महात्मा गाँधी के समर्थक जयप्रकाश नारायण, अशोक मेहता, मोरारजी देसाई, निजलिंगअप्प्पा, हेडगेवार, जे.बी.
कृपलाणी,
अटल बिहारी बाजपेयी आदि ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ कर
तानाशाही को प्रोत्साहन देने के लिए यह दिन देखे, भारत के क्रांतिकारी शहीदों ने अपने प्राण-न्यौछावर किए? वीर सावरकर, स्वामी श्रद्धानंद, भगतसिंह, आजाद, लाला लाजपतराय, लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक और नेता जी सुभाष चंद्र बोस जैसे आजादी के परवानों ने जेल में
यातनाएँ भोगीं और अंत में अपने प्राण देश हित में गवाँ दिए। यह सब क्या इसी इंदिरा गाँधी के प्रजातंत्र और समाजवाद
के लिए?
इंदिरा जी कहती है कि हमने
जो अभी तक किया सिर्फ आर्थिक रूप से देश के सुधार के लिए, पर यह दावा गलत है, झूठ है। यह जो भी 12 महीनों में कार्य किया गया सिर्फ
प्रजातंत्र को खत्म करने तथा विरोधी राजनैतिक दलों को कुचलने तथा उनके अस्तित्व का
अंत करने के लिए है। इस दौरान जरा भी आर्थिक स्थिति का सुधार नहीं हुआ | बल्कि, आर्थिक
दृष्टि से हम और नीचे गिरे। जो देश द्वितीय महायुद्ध में (जापान व जर्मनी) एकदम
रौंद डाले गये थे, नेस्तनाबूत
कर दिए गए थे, वे ही आज हमें मदद कर
रहे हैं,
वही देश अपने पैरों पर खड़े हैं, अभी ही पश्चिमी जर्मनी ने हमें 138 करोड़ की मदद की।
देशभक्त लोगों का देश ऐसा होता है जैसा जापान और पश्चिमी जर्मनी पूर्वी जर्मनी अभी
भी रूस का गुलाम हैं। रूस ने तो अपने को ऐसा बना लिया कि वह अपना साम्राज्य चारों
ओर फैलाते जा रहा है जैसे उसने पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, युगोस्लोविया तथा अन्य छोटे-छोटे यूरोप के देशों पर कब्जा
कर लिया है। चीन के नेफा तथा कोरिया, वियतनाम आदि पर अपना वर्चस्व करके उसने भी साम्राज्यवादी
प्रवृत्ति को अपना लिया है। ऐसे देशों से इंदिरा गाँधी प्रजातंत्र कायम करने की
आशा करती हैं। पहले उनके कारनामे देखें फिर उनकी मदद लें या उन पर भरोसा करें।
अंग्रेजों के शासन काल में
भी सरकारी कर्मचारी इतना ज्यादा शासन का पक्ष नहीं लेते थे, न शासन को चुनाव में इतना घसीटा करते थे। इन्हें चुनाव की
राजनीति से काफी अलग रखते थे। जेलों में भी अंग्रेजों ने राजनैतिक बंदियों पर इतना
जुल्म नहीं किया जितना अब किया जा रहा है। जबकि हम राजनैतिक मीसा निरुद्ध है तब भी
उनसे एक कातिल से भी अधिक खराब व्यवहार किया जाता है । इन सबके बाद भी इंदिरा जी
हर मामले में चाहे वह समाचार पत्र के सम्बंध में हो चाहे कालेज के विद्यार्थियों
के सम्बंध में हो, चाहे
राजनैतिक पार्टी के सम्बंध में हो रोज झूठा प्रचार रेडियो, टेलीविजन, समाचार
पत्रों तथा जगह-जगह सभा करके ऐलान कर रही हैं कि लोगों को राहत मिल गई है।
इन सबके बाद भी जो भी
राजनैतिक मीसा निरुद्ध हैं उनने ठान लिया है कि चाहे जितने दिन भी हों वे जेलों
में रहने को तैयार हैं। पर इंदिरा गाँधी उनके विचारों को, उनके गतिविधियों को खत्म नहीं कर सकती, क्योंकि उनका उद्देश्य सच्चाई, ईमानदारी का, देश के उत्थान के लिए है। वे कहते हैं कि 28 वर्षों में देश
के साथ जो गलत हुआ है और होते जा रहा है उसे उत्थान की और ले जाना उनका फर्ज है, उनका कर्तव्य है, नहीं तो वे इस भारत देश के नागरिक होने लायक नहीं है। ऐसे
विचारों को सुनकर मुझे पूर्ण विश्वास है कि देश जागेगा तथा इंदिरा गाँधी के इस
अत्याचारी, अन्यायी शासन तथा
भ्रष्टाचार के अप्रजातांत्रिक तरीके को लोग खत्म जरूर करेंगे।
विरोधी दलों पर, नेताओं पर इंदिरा गाँधी इल्जाम लगाती हैं कि विरोधी दल को
अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान नहीं है, किस प्रकार से देश में विरोधी दल को कार्य करना चाहिए, उनका कर्तव्य क्या है उनमें समझ नहीं, वे कहती हैं कि वे लोगों में शासन के प्रति बगावत फैलाते
हैं,
राज्य के पुलिस, देश की सेना तथा कर्मचारियों को विद्रोह के लिए उकसाते हैं, पर यह सब झूठ है। हम विरोधी दल के लोगों को अपने
उत्तरदायित्व का ज्ञान है, हम जानते
हैं कि दासता- बद्ध देश को कैसे ऊँचा उठाना है, हमें यदि देशद्रोही हिंसक कहते हैं तो हमें इसकी परवाह नहीं
है । शासन में जो लगातार 28 वर्षों से बैठे हैं तथा उनके इस शासन काल में देश चाहे
कितना भी गरीब हो गया हो पर उन्हें सिर्फ अपनी गद्दी की ही चिन्ता है। जिस देश के
शासन ने आजादी के पहले के सारे सपनों को खाक में मिलाकर लोगों को निर्धन किया, जिस शराब और अफीम के खिलाफ लाखों लोगों ने अपनी बली दी उसे
ही बेच कर सरकार ने लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर, श्रमजीवियों को बेघर- बार कर दिया है कि उन्हें आज तक 10
फुट जमीन भी रहने को न मिली।
जिसने भी इन सबके विरूद्ध आवाज उठाई उन्हें लाठी
और गोलियाँ मिली। आखिर प्रजातंत्र तथा न्याय की दुहाई देकर इंदिरा गाँधी
प्रजातंत्र और न्याय की हँसी क्यों उड़ा रही हैं?
हम इतना ही कह सकते हैं कि
हम देश की सच्ची सेवा कर रहे हैं, भले
ही हम अभी नया पौधा न लगा पाएँ, पर
औरों के प्रयत्न के लिए तो सच्चा सुलभ रास्ता व स्थान बना ही देंगे। जिससे देश
स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर तथा
संपन्न बन सके, प्रजातंत्र की रक्षा
कर सके,
तथा लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागृति कर सके।
देश की असल जड़ ग्राम में
होनी चाहिए। भारत देश में सब कुछ है, खुशहाली के सारे साधन हैं, यही वजह है कि एक समय भारत सोने की चिड़िया कहलाती थी।
विश्व भर में यहाँ की सभ्यता, संस्कृति
यहाँ का ऐश्वर्य जगजाहिर था। भारत हर दिशा में शिक्षा, कला-कौशल, साहित्य, स्वतंत्र जीवन, पूर्ण विकास के अवसर तथा बगैर जाति, धर्म तथा वर्ग संघर्ष के एक विशाल सांस्कृतिक एकता में बंधा
था। लोगों में देश के प्रति प्रेम तथा समाज व देश के लिए बलिदान करने की तमन्ना
थी। पर सैकड़ों साल की गुलामी ने हमें सिर्फ निर्धन ही नहीं किया वरन हर किस्म की
कमजोरी भी ला दी। हम स्वाभिमानी तथा आत्मनिर्भर तो रहे पर हम गुलाम होकर हर
बात के लिए दूसरों के सहारे जीने के आदी हो गए। सार्वजनिक रूप से सोचने, समझने तथा कार्य करने की क्षमता जाती रही । हम अपनत्व भूल
गये,
हम सिर्फ अपने पुराने गौरव की गाथा गाते रहे, पर हममें उन गौरवमय जीवन तथा स्थिति को कायम रखने की न
इच्छा रही, न शक्ति रही । हम आपस
में एक दूसरे से दूर होकर दूसरों के टुकड़ों पर दूसरों के विचारों पर जीने के आदी
हो गए।
अत: अब हमें देश को जागृत
करना है,
लोगों को नई दिशा देना है, गुलामी से हममें जो विकृति आई है उसे दूर कर अपनत्व तथा
अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करके देश का निर्माण नई दिशा की ओर करना है। राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए देश
में एक ऐसा आंदोलन करना होगा जिससे हम अपने प्रजातंत्र तथा अपने मूलभूत नागरिक
अधिकारों की रक्षा करते हुए देश को खुशहाली की और ले जाएँ। यही सारे विरोधी दलों
की इच्छा है, जिसे इंदिरा जी नहीं
चाहती।
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